शीशे मे अपना चेहरा देखा तो डर गया
जीने की चाह में क्यूँ इतना मैं मर गया
ऐ ज़िन्दगी अहसास की खुशबू कहाँ गई
तेरी रगों में इतना जहर कैसे भर गया
इक दिन जो मुलाकात हुई अपने आप से
मिलते ही नज़र जाने क्यों चेहरा उतर गया
आँखों की पुतलियों ने फिर फिर किया सवाल
इक आदमी था रहता, अब वो किधर गया
आखिर में शर्मसार हुई ज़िन्दगी की रात
मुज़रिम सा मुँह छिपा के जब अपने घर गया
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ReplyDelete'आँखों की पुतलियों ने फिर फिर किया सवाल
ReplyDeleteइक आदमी था रहता, अब वो किधर गया.........'
कशमकश और अपराधबोध की स्तिथि का सटीक चित्रण ...
"ख़ुदा से लाख छुपा..खुदाई मिटाने के बाद.....
आईने में खुद को देखा...ख़ुदा नजर आया.... ...."
गजल की मौलिकता एवं भावों की गहराई देर तक बांधे रहती है।
ReplyDeleteऐ ज़िन्दगी अहसास की खुशबू कहाँ गई
ReplyDeleteतेरी रगों में इतना जहर कैसे भर गया
Gahre bhaav hain is gazal meion ... gazab ke sher ... daad kabool karen hamaari bhi ...
सब की यही कहानी है...क्या करें..
ReplyDeleteसुन्दर एवं प्रसंशीय कविता .
ReplyDeleteKahin padha tha k best of ur poems will b written in worst tym of ur lyf...sach hi hai shayad
ReplyDeleteऐ ज़िन्दगी अहसास की खुशबू कहाँ गई
ReplyDeleteतेरी रगों में इतना जहर कैसे भर गया
...bahut gahre bhav bhare hain gazal mein..
bahut achhi prastuti... likhti rahiyega..
haardik shubhkaamnayen
आँखों की पुतलियों ने फिर फिर किया सवाल
ReplyDeleteइक आदमी था रहता, अब वो किधर गया
अच्छी लगी ये पंक्तियां !
बेहतरीन!
ReplyDeleteआप को सपरिवार नववर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनाएं .
बहुत बहुत सुंदर - सटीक और सार्थक - नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteऐ ज़िन्दगी अहसास की खुशबू कहाँ गई
ReplyDeleteतेरी रगों में इतना जहर कैसे भर गया
बेहतरीन
"ऐ ज़िन्दगी अहसास की खुशबू कहाँ गई
ReplyDeleteतेरी रगों में इतना जहर कैसे भर गया
आखिर में शर्मसार हुई ज़िन्दगी की रात
मुज़रिम सा मुँह छिपा के जब अपने घर गया
waaah ,,, bahut khoob
behtareen ghazal
har sher jabardast aur asardaar hai
bahut badhayi
aabhaar
rachnaa
ReplyDeleteachhee hai ... !
namaskaar priyanka ji....
ReplyDeletesail bhai ke thru aapke yaahan aana hua....
vyarth na hua aana....
आँखों की पुतलियों ने फिर फिर किया सवाल
इक आदमी था रहता, अब वो किधर गया
talaash khatm ho jaldi...
aapka swaagat hai mere yahaan bhi....
सीधे और सरल शब्दों से बंधा लय रचना को संवार देता है, फिर आप उसे तकनीकी तौर पर पॉलिश भले ही न करे, वो रस तो देता ही है। और जब पॉलिश भी हो जाती है तो निखार आ जाता है..। यही निखार है और खूबसूरत अंदाज़ भी।
ReplyDeleteअच्छा लिखा है। आप अपने लेख से समाज की सेवा करती रहीये और समाज सुधार पर भी अपना जलवा बिखेरये।
ReplyDeletewah,behtrin ghazal.MARVELLOUS.
ReplyDeleteसुन्दर एवं सारगर्भित गजल
ReplyDeleteशुभकामनाये
nice
ReplyDeleteप्रियंका जी ....आप कुछ लिख नहीं रहीं
ReplyDeleteक्या हुआ....बहुत दिन हो गए...
ऐ ज़िन्दगी अहसास की खुशबू कहाँ गई
ReplyDeleteतेरी रगों में इतना जहर कैसे भर गया...very true..
good work.. keep it up :)
ReplyDeleteसटीक और सार्थक
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