शीशे मे अपना चेहरा देखा तो डर गया
जीने की चाह में क्यूँ इतना मैं मर गया
ऐ ज़िन्दगी अहसास की खुशबू कहाँ गई
तेरी रगों में इतना जहर कैसे भर गया
इक दिन जो मुलाकात हुई अपने आप से
मिलते ही नज़र जाने क्यों चेहरा उतर गया
आँखों की पुतलियों ने फिर फिर किया सवाल
इक आदमी था रहता, अब वो किधर गया
आखिर में शर्मसार हुई ज़िन्दगी की रात
मुज़रिम सा मुँह छिपा के जब अपने घर गया
Monday, October 25, 2010
Sunday, October 10, 2010
प्राण की रागिनी फिर मुखर हो उठे
यूँ जगा दो हृदय के स्वरों को प्रिये
प्राण की रागिनी फिर मुखर हो उठे
गीत के नव स्वरों को नया साज दो
प्रेम के छंद को एक अंदाज़ दो
दो हमें भाव की व्यंजना तुम वही
नेह की मुरलिका फिर सस्वर हो उठे
जल उठे फिर प्रणय-दीप की वर्तिका
मेल हो छंद रस-भाव संगीत का
खोल दो प्रेरणा के नए द्वार तुम
साधना का पुनः स्वर प्रखर हो उठे
रस-भरी हो प्रणय कुञ्ज की गायिका
मन, हृदय, प्राण निर्झर बनें भाव का
राग-सर में विचरने लगे भावना
उल्लासित प्रेम की हर लहर हो उठे
यूँ जगा दो हृदय के स्वरों को प्रिये
प्राण की रागिनी फिर मुखर हो उठे
प्राण की रागिनी फिर मुखर हो उठे
गीत के नव स्वरों को नया साज दो
प्रेम के छंद को एक अंदाज़ दो
दो हमें भाव की व्यंजना तुम वही
नेह की मुरलिका फिर सस्वर हो उठे
जल उठे फिर प्रणय-दीप की वर्तिका
मेल हो छंद रस-भाव संगीत का
खोल दो प्रेरणा के नए द्वार तुम
साधना का पुनः स्वर प्रखर हो उठे
रस-भरी हो प्रणय कुञ्ज की गायिका
मन, हृदय, प्राण निर्झर बनें भाव का
राग-सर में विचरने लगे भावना
उल्लासित प्रेम की हर लहर हो उठे
यूँ जगा दो हृदय के स्वरों को प्रिये
प्राण की रागिनी फिर मुखर हो उठे
Friday, October 1, 2010
आज तुम्हारे अनुबंधों पर
आज तुम्हारे अनुबंधों पर
बहुत मनन कर रहीं व्यथाएँ
अब तक के सारे तलाश के
निकले हैं अंजाम निराले
आस भरे सपने जाने क्यों
लगते हैं मावस से काले
सूनापन कहता चुपके से
बीते पल की मधुर कथाएँ
आज तुम्हारे अनुबंधों पर
बहुत मनन कर रहीं व्यथाएँ
मन की बात अधर से कह लूँ
ऐसा हाल कहाँ है मेरा
सारी रात अगन पीने के
बाद मिलेगा कहीं सवेरा
लेकिन पल पल धूमिल पड़ती
दीपक के लौ की आशाएँ
आज तुम्हारे अनुबंधों पर
बहुत मनन कर रहीं व्यथाएँ
बहुत मनन कर रहीं व्यथाएँ
अब तक के सारे तलाश के
निकले हैं अंजाम निराले
आस भरे सपने जाने क्यों
लगते हैं मावस से काले
सूनापन कहता चुपके से
बीते पल की मधुर कथाएँ
आज तुम्हारे अनुबंधों पर
बहुत मनन कर रहीं व्यथाएँ
मन की बात अधर से कह लूँ
ऐसा हाल कहाँ है मेरा
सारी रात अगन पीने के
बाद मिलेगा कहीं सवेरा
लेकिन पल पल धूमिल पड़ती
दीपक के लौ की आशाएँ
आज तुम्हारे अनुबंधों पर
बहुत मनन कर रहीं व्यथाएँ
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