Thursday, October 13, 2011

कौन उद्दीपन रसों का

कौन उद्दीपन रसों का,
कौन छंद विधान हो तुम
कौन शरद विहान हो तुम
स्वप्न के नभ से उतरकर
छा गए स्वच्छंद भू पर
कौन मानस में निरंतर
भर रहे तूफ़ान हो तुम

विरह में हर रात बीती
रात की हर बात बीती
चुभ रहे आतुर हृदय में
कौन तीखे बान हो तुम
हार में तुम , जीत में तुम
चिर मिलन के गीत में तुम
कौन प्रणयानल-शिखा में
जल रहे प्रिय प्रान हो तुम  

12 comments:

  1. बहुत सुन्दर
    रसभरी कविता

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  2. प्रियंका जी नमस्ते !
    कितने दिनों बाद आई है आपकी रचना ...
    सार्थक, सटीक, भावपूर्ण .....बिलकुल आपके स्तर के अनुकूल .........आपसे अनुनय है की आप थोड़ा सा कम इंतज़ार करवाया करें ...
    मेरे यहाँ आपका स्वागत है

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  3. प्रियंका जी
    क्या खूब हिंदी के शब्दों का प्रयोग किया है आपने, पढ़ कर दिल प्रसन्न हो गया मेरा!
    मैंने भी एक नयी पोस्ट लगाई है, आइयेगा!

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  4. बेहतरीन कविता।
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    कल 15/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  5. is kavita me bhasha pravah dekhte hi banta hai...umda prastuti

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  6. वाह! वाह!!
    बड़ा ही सुन्दर/मनभावन गीत है...
    सादर बधाईयां...

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  7. ्बहुत ही सुन्दर रसभरी रचना है……………।बधाई।

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  8. बहुत खूब!


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    जो मेरा मन कहे पर आपका स्वागत है

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  9. सुन्दर रचना, सार्थक भाव, बधाई.

    कृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नवीनतम पोस्ट पर भी पधारें , आभारी होऊंगा.

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  10. अति सुंदर - आशीष

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