आज तुम्हारे अनुबंधों पर
बहुत मनन कर रहीं व्यथाएँ
अब तक के सारे तलाश के
निकले हैं अंजाम निराले
आस भरे सपने जाने क्यों
लगते हैं मावस से काले
सूनापन कहता चुपके से
बीते पल की मधुर कथाएँ
आज तुम्हारे अनुबंधों पर
बहुत मनन कर रहीं व्यथाएँ
मन की बात अधर से कह लूँ
ऐसा हाल कहाँ है मेरा
सारी रात अगन पीने के
बाद मिलेगा कहीं सवेरा
लेकिन पल पल धूमिल पड़ती
दीपक के लौ की आशाएँ
आज तुम्हारे अनुबंधों पर
बहुत मनन कर रहीं व्यथाएँ
Very beautiful !
ReplyDeleteआज तुम्हारे अनुबन्धों पर मनन कर रही-----
ReplyDeleteप्रियंका इतनी संवेदना समेटे ये रचना दिल को छू गयी। बहुत अच्छा लिखती हो। बधाई। कृ्प्या मेरा ये ब्लाग भी देखें।
http://www.veeranchalgatha.blogspot.com/
सारी रात अगन पीने के
ReplyDeleteबाद मिलेगा कहीं सवेरा
या दो पंक्तियाँ काफी हैं आपकी रचनात्मकता पहचानने के लिए .....
स्वागत है .....!!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति प्रियंका जी ........विशेषतः
ReplyDelete" सारी रात अगन पीने के
बाद मिलेगा कहीं सवेरा"...........ये पंक्ति....
"अब तक के सारे तलाश के
निकले हैं अंजाम निलारे"
क्या यहाँ टाइप करते हुए त्रुटी हुई है.....या फिर निलारे कोई नया प्रयोग है......कृपया स्पष्ट करे.....
साथ ही नियमित लेखन के लिए शुभ कामनाएं.........
http://pradeep-splendor.blogspot.com/
very nice thougths
ReplyDeleteप्रियंका जी सोनी
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत लिखा है , बधाई !
… और पहली ही पोस्ट है
ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है !
आशा है आगे भी अच्छी रचनाएं मिलेंगी यहां । हरकीरतजी जैसी विदुषी की परख कसौटी पर ख़रा उतरने वाला स्वर्ण भविष्य में कुंदन बने , यही शुभकामना है ।
- राजेन्द्र स्वर्णकार
Nice.....
ReplyDeletevery beautiful words ....
Ravindra Soni
bahot sunder.
ReplyDeletebahut sunder
ReplyDeleteसूनापन कहता चुपके से
ReplyDeleteबीते पल की मधुर कथाएँ
आज तुम्हारे अनुबंधों पर
बहुत मनन कर रहीं व्यथाएँ
gr8
karun bhavo kee sunder abhivykti...........
ReplyDeleteshubhkamnae......
मन के उपजे विचार बहुत सुन्दर ढंग से पिरोये हैं. स्वागतम...
ReplyDeleteसुंदर नवगीत।
ReplyDeleteहर रंग को आपने बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteअब तक के सारे तलाश के
ReplyDeleteनिकले हैं अंजाम निराले
nice post
http://shayaridays.blogspot.com
Longings illustarated v well.
ReplyDeleteyun hi bhatakta hua chala aaya. bade din baad koi dhang ki rachna padhne ko mili aur thoda sukun sa mila. varna to log kewal shakal dikhane ke chakkar me aur jhoothee vah vahee lootne ke liye hee blog likhte hain- 'parasparam prashanshati gudo aho roopah aho dhwanih' ko charitarth karte huye. aaj laga ki kisee padhe likhe ne koi kavita likhee hai. bahut bahut badhai.
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