Friday, October 1, 2010

आज तुम्हारे अनुबंधों पर

आज तुम्हारे अनुबंधों पर
बहुत मनन कर रहीं व्यथाएँ

अब तक के सारे तलाश के
निकले हैं अंजाम निराले
आस भरे सपने जाने क्यों
लगते हैं मावस से काले

सूनापन कहता चुपके से
बीते पल की मधुर कथाएँ
आज तुम्हारे अनुबंधों पर
बहुत मनन कर रहीं व्यथाएँ

मन की बात अधर से कह लूँ
ऐसा हाल कहाँ है मेरा
सारी रात अगन पीने के
बाद मिलेगा कहीं सवेरा

लेकिन पल पल धूमिल पड़ती
दीपक के लौ की आशाएँ
आज तुम्हारे अनुबंधों पर
बहुत मनन कर रहीं व्यथाएँ

17 comments:

  1. आज तुम्हारे अनुबन्धों पर मनन कर रही-----
    प्रियंका इतनी संवेदना समेटे ये रचना दिल को छू गयी। बहुत अच्छा लिखती हो। बधाई। कृ्प्या मेरा ये ब्लाग भी देखें।
    http://www.veeranchalgatha.blogspot.com/

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  2. सारी रात अगन पीने के
    बाद मिलेगा कहीं सवेरा

    या दो पंक्तियाँ काफी हैं आपकी रचनात्मकता पहचानने के लिए .....
    स्वागत है .....!!

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  3. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति प्रियंका जी ........विशेषतः
    " सारी रात अगन पीने के
    बाद मिलेगा कहीं सवेरा"...........ये पंक्ति....
    "अब तक के सारे तलाश के
    निकले हैं अंजाम निलारे"
    क्या यहाँ टाइप करते हुए त्रुटी हुई है.....या फिर निलारे कोई नया प्रयोग है......कृपया स्पष्ट करे.....
    साथ ही नियमित लेखन के लिए शुभ कामनाएं.........
    http://pradeep-splendor.blogspot.com/

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  4. प्रियंका जी सोनी

    बहुत सुंदर गीत लिखा है , बधाई !
    … और पहली ही पोस्ट है
    ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है !
    आशा है आगे भी अच्छी रचनाएं मिलेंगी यहां । हरकीरतजी जैसी विदुषी की परख कसौटी पर ख़रा उतरने वाला स्वर्ण भविष्य में कुंदन बने , यही शुभकामना है ।


    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  5. Nice.....
    very beautiful words ....
    Ravindra Soni

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  6. सूनापन कहता चुपके से
    बीते पल की मधुर कथाएँ
    आज तुम्हारे अनुबंधों पर
    बहुत मनन कर रहीं व्यथाएँ
    gr8

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  7. karun bhavo kee sunder abhivykti...........
    shubhkamnae......

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  8. मन के उपजे विचार बहुत सुन्दर ढंग से पिरोये हैं. स्वागतम...

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  9. हर रंग को आपने बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  10. अब तक के सारे तलाश के
    निकले हैं अंजाम निराले

    nice post
    http://shayaridays.blogspot.com

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  11. yun hi bhatakta hua chala aaya. bade din baad koi dhang ki rachna padhne ko mili aur thoda sukun sa mila. varna to log kewal shakal dikhane ke chakkar me aur jhoothee vah vahee lootne ke liye hee blog likhte hain- 'parasparam prashanshati gudo aho roopah aho dhwanih' ko charitarth karte huye. aaj laga ki kisee padhe likhe ne koi kavita likhee hai. bahut bahut badhai.

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