कौन उद्दीपन रसों का,
कौन छंद विधान हो तुम
कौन शरद विहान हो तुम
स्वप्न के नभ से उतरकर
छा गए स्वच्छंद भू पर
कौन मानस में निरंतर
भर रहे तूफ़ान हो तुम
विरह में हर रात बीती
रात की हर बात बीती
चुभ रहे आतुर हृदय में
कौन तीखे बान हो तुम
हार में तुम , जीत में तुम
चिर मिलन के गीत में तुम
जल रहे प्रिय प्रान हो तुम
कौन छंद विधान हो तुम
कौन शरद विहान हो तुम
स्वप्न के नभ से उतरकर
छा गए स्वच्छंद भू पर
कौन मानस में निरंतर
भर रहे तूफ़ान हो तुम
विरह में हर रात बीती
रात की हर बात बीती
चुभ रहे आतुर हृदय में
कौन तीखे बान हो तुम
हार में तुम , जीत में तुम
चिर मिलन के गीत में तुम
कौन प्रणयानल-शिखा में