tag:blogger.com,1999:blog-34796718195095292772024-03-12T17:26:52.526-07:00पानी की लकीरेंPriyanka Sonihttp://www.blogger.com/profile/15984049412165820406noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-3479671819509529277.post-69421917694889716052011-10-13T00:08:00.000-07:002011-10-17T23:22:18.159-07:00कौन उद्दीपन रसों का<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">कौन उद्दीपन रसों का, <br />
कौन छंद विधान हो तुम <br />
कौन शरद विहान हो तुम <br />
स्वप्न के नभ से उतरकर<br />
छा गए स्वच्छंद भू पर <br />
कौन मानस में निरंतर <br />
भर रहे तूफ़ान हो तुम <br />
<br />
विरह में हर रात बीती <br />
रात की हर बात बीती <br />
चुभ रहे आतुर हृदय में <br />
कौन तीखे बान हो तुम<br />
हार में तुम , जीत में तुम <br />
चिर मिलन के गीत में तुम <br />
<div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;">कौन प्रणयानल-शिखा में </div></div>जल रहे प्रिय प्रान हो तुम </div>Priyanka Sonihttp://www.blogger.com/profile/15984049412165820406noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-3479671819509529277.post-11204934243410390132010-10-25T03:27:00.000-07:002010-10-25T03:28:29.398-07:00शीशे मे अपना चेहरा देखा तो डर गयाशीशे मे अपना चेहरा देखा तो डर गया<br />
जीने की चाह में क्यूँ इतना मैं मर गया<br />
<br />
ऐ ज़िन्दगी अहसास की खुशबू कहाँ गई<br />
तेरी रगों में इतना जहर कैसे भर गया<br />
<br />
इक दिन जो मुलाकात हुई अपने आप से <br />
मिलते ही नज़र जाने क्यों चेहरा उतर गया <br />
<br />
<br />
आँखों की पुतलियों ने फिर फिर किया सवाल <br />
इक आदमी था रहता, अब वो किधर गया<br />
<br />
आखिर में शर्मसार हुई ज़िन्दगी की रात<br />
मुज़रिम सा मुँह छिपा के जब अपने घर गयाPriyanka Sonihttp://www.blogger.com/profile/15984049412165820406noreply@blogger.com24tag:blogger.com,1999:blog-3479671819509529277.post-43857260910290769652010-10-10T22:01:00.000-07:002011-10-17T21:50:06.801-07:00प्राण की रागिनी फिर मुखर हो उठे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">यूँ जगा दो हृदय के स्वरों को प्रिये<br />
प्राण की रागिनी फिर मुखर हो उठे<br />
<br />
गीत के नव स्वरों को नया साज दो<br />
प्रेम के छंद को एक अंदाज़ दो <br />
दो हमें भाव की व्यंजना तुम वही<br />
नेह की मुरलिका फिर सस्वर हो उठे<br />
<br />
<span style="font-size: small;">जल</span> उठे फिर प्रणय-दीप की वर्तिका<br />
मेल हो छंद रस-भाव संगीत का <br />
खोल दो प्रेरणा के नए द्वार तुम<br />
साधना का पुनः स्वर प्रखर हो उठे<br />
<br />
रस-भरी हो प्रणय कुञ्ज की गायिका <br />
मन, हृदय, प्राण निर्झर बनें भाव का <br />
राग-सर में विचरने लगे भावना<br />
उल्लासित प्रेम की हर लहर हो उठे<br />
<br />
यूँ जगा दो हृदय के स्वरों को प्रिये<br />
प्राण की रागिनी फिर मुखर हो उठे</div>Priyanka Sonihttp://www.blogger.com/profile/15984049412165820406noreply@blogger.com31tag:blogger.com,1999:blog-3479671819509529277.post-33547128361857010622010-10-01T02:45:00.000-07:002010-10-05T22:20:56.374-07:00आज तुम्हारे अनुबंधों परआज तुम्हारे अनुबंधों पर<br />
बहुत मनन कर रहीं व्यथाएँ<br />
<br />
अब तक के सारे तलाश के<br />
निकले हैं अंजाम निराले <br />
आस भरे सपने जाने क्यों<br />
लगते हैं मावस से काले<br />
<br />
सूनापन कहता चुपके से<br />
बीते पल की मधुर कथाएँ<br />
आज तुम्हारे अनुबंधों पर<br />
बहुत मनन कर रहीं व्यथाएँ <br />
<br />
मन की बात अधर से कह लूँ<br />
ऐसा हाल कहाँ है मेरा<br />
सारी रात अगन पीने के<br />
बाद मिलेगा कहीं सवेरा<br />
<br />
लेकिन पल पल धूमिल पड़ती<br />
दीपक के लौ की आशाएँ<br />
आज तुम्हारे अनुबंधों पर<br />
बहुत मनन कर रहीं व्यथाएँPriyanka Sonihttp://www.blogger.com/profile/15984049412165820406noreply@blogger.com17